गाँधी होना कितना अासान है?? in Hindi

यह लेख उन लोगों के लिये बहुत ही लाभदायक है जो कि गाँधी होना चाहते है, सिर्फ चाहते ही नही हैं, गाँधी होने का प्रमाणपत्र भी चाहते हैं अौर प्रमाणपत्र से प्राप्त होने वाली विभिन्न सुविधाअों का, वाहवाही का भोग भी करना चाहते हैं।  चौंकिये मत ऐसे बहुत दुकानदार हैं भारत में जो गाँधी होने का प्रमाणपत्र देते हैं अौर उनके प्रमाणपत्रों के अाधार पर ही भारत का मीडिया, विदेशी मीडिया अौर अप्रवासी भारतीय लोगों के महान होने, सामाजिक प्रतिबद्ध होने या ना होने का मूल्यांकन करते हैं।  चूँकि ये दुकानदार लोग पूरी तरह व्यवसायिक हैं अंग्रेजी में इन्हे प्रोफेशनल कहा जा सकता है।  जैसे कि भारत मे हर गली कूचे में खुलने वाले इंजीनियरिंग कॅालेज के मालिक लोग इन कॅालेजों मे पढ़ने वाले छात्रों मे से कुछ की नौकारियों का जुगाड़ करते हैं ताकि इन कॅालेजों मे अाने वाले छात्रों में इन कॅालेजों के प्रति अास्था बनी रहे उसी तरह गाँधी होने का प्रमाणपत्र देने वाले प्रोफेशनल्स अपने कस्टमर लोगों के लिये मीडिया कवरेज, प्रायोजित अान्दोलनों, विदेशों से अाने वाला फंड तथा विभिन्न प्रकार के पुरस्कारों का भी पूरा इन्तजाम करते हैं।

जैसे कि व्यवसायिक कॅालेजों के छात्रों के कोइ रिश्तेदार यदि किसी बड़ी कंपनी में अच्छी पोस्ट मे हुये तो भले ही कैसी भी योग्यता हो केवल डिग्री होने के अाधार पर अच्छी कंपनी में अच्छी नौकरी लग जाती है, जुगाड़ मे अासानी होती है।  बिलकुल इसी तरह यदि अापके या अापकी पत्नी के रिश्तेदारों में किसी ने कभी किसी ऐसी संस्था में काम करने के बदले वेतन पाया हो जो कि गांधी के नाम पर चलती हो या गांधीवादी होने का प्रमाणपत्र रखती हो तो अापको गांधी होने का या गांधीवादी होने का प्रमाणपत्र मिलने अौर बेहतर सुविधायें प्राप्त करने मे अासानी होती है, यदि अाप भाग्य से ब्राम्हण जाति के हों तो समझिये कि अापकी दशों उंगलियां घी में अौर सिर कढ़ाहे में अाप खुद ही एक दुकानदार बन जाइये।  दुकानदार बनने के लिये बड़े अौर स्थापित दुकानदारों से संबद्धता लेनी होती है जो कि उन लोगों के प्रायोजित अान्दोलनों मे भाग लेने से या उनके लिये कुछ कस्टमरों का इन्तजाम कर देने से अासानी से मिल जाती है।  यदि अाप ब्राम्हण हैं अापके या अापकी पत्नी के कोई ऐसे रिश्तेदार हैं भी हैं जिन्होने कभी कुछ क्षणों के लिये गांधी जी के किसी अाश्रम मे जाकर कुछ देर बैठ लिया हो या कुछ चने चबा लिये हों या पानी पी लिया हो या दूर से ही गांधी जी की अावाज सुनने को पा लिये हों तब तो अापने अभी तक अपनी क्षमता पहचानी ही नही है अाप को तो गांधीवादियों का नेतृत्व संभालना चाहिये क्योकि जो योग्यतायें खुद गांधी जी को अपनी खुद की नैसर्गिक संतानों मे नही दिखी थीं वह योग्यतायें अापमें हैं अापको जरुरत है तो बस एक स्थापित दुकानदार से गांधी या गांधीवादी होने के प्रमाणपत्र की।

अब चूंकि दुनिया में बहुत बदलाव हो रहे है दुनिया के बाजार विकास के नाम पर अार्थिक विकास के नाम पर, अार्थिक स्वातंत्र्य के नाम पर संभ्रान्त वर्ग की विलासिता वाली चीजों को अाम लोगों की पहुच तक ला रहें हैं तो गांधीवाद के क्षेत्र में भी कुछ प्रगतिशील दुकानदार गांधी-बाजार का वैश्वीकरण करने के लिये अागे अा रहें हैं, इनमे से अधिकतर लोग हैं तो ब्राम्हण जाति के लोग किन्तु अमेरिका में बहुत सालों तक रहकर प्रगतिशीलता को जाने समझे, लोकतंत्र को समझे, जनान्दोलनों का असली मर्म समझे, अमेरिका में बैठ के वहाँ की अति उन्नत तकनीक की बनी अाम समाज को जानने समझने वाली विशेष किस्म की दूरबीनों से भारत के असली समाज को जाने अौर समझे हैं।  तो ऐसे लोगों ने पहले तो खुद तो पुराने दुकानदारों से खुद के गांधी होने के प्रमाण लिये फिर थोड़ा जुगाड़ तगाड़ कर के अपनी खुद की दुकानें जमा ली, ये नये प्रगतिशील किस्म के दुकानदार पुराने दुकानदारों से बेहतर हैं क्योकि ये लोग जाति के अाधार पर प्रमाणपत्र नहीं देते बल्कि प्रायोजित अान्दलोनों की जरुरतों के अाधार पर, या फंड के जुगाड़ के अाधार पर या मीडिया में सुर्खियां लाने मे कौन कितना सहयोगी हो सकता है इन सब की गणित के अाधार पर देतें हैं।  कुछ न्यूनतम अहर्तायें अति अावश्यक है वे यह हैं कि अापके पास धन की, संसाधनों की कमी नही होनी चाहिये यदि अाप करोड़ों का फंड लाते रहे हों तो अापकी योग्यता अौर भी बढ़ जाती है अौर अापके अन्दर सामाजिक प्रतिबद्धता, अन्दर की असली वाली ईमानदारी नही होनी चाहिये।  यही योग्यतायें अागे चल कर अापको कोई विदेशी पुरस्कार भी दिलवा सकतीं हैं जिनकी बड़ी मांग रहती है भारत में अौर भारतीय मीडिया इन पुरस्कारों में खूब हवा भी भरे रहता है।

जैसे कि कॅालेजों में लोग लाईन लगा के डिग्री लेने जाते हैं, कुछ सुनिश्चित किताबें होती हैं उनको रटते रहिये अौर डिग्रियां लेते जाईये अौर योग्य बनते जाईये।  जैसे कि अाजकल चल रही विभिन्न प्रकार की अाध्यात्मिक किस्म वाली दुकानों मे जाईये कुछ दिनों वाले शिविर कीजिये तो अाप समझदार हो जायेगें यदि अाध्यात्मिक शिक्षक होना चाहते हैं तो लगातार इन शिविरों को करते जाईये अौर शब्दों को रट कर वैसे ही दोहराते जाने की कला सीख लीजिये, लीजिये अब अाप अाम बेवकू्फ किस्म के नही रहे अाप समझदार हो चुकें हैं अौर अाध्यात्मिक शिक्षक होने का चोला पहन लीजिये, अापको बने बनाये चेले मिल जायेंगें अौर 5 हजार से 15-20 हजार रुपये हर महीने उपर से तन्खवाह ऊपर से मिलेगी (अाजकल के यही रेट चल रहे हैं, वेतनमान का कम या अधिक होना अापकी विदेशी भाषाअों मे पकड़ तथा कम्प्यूटर के ज्ञान पर निर्भर करता है)।  बिलकुल इसी प्रकार से अाप कुर्ता पायजामा पहन लीजिये, लुंगी पहनें तो अौर बढ़िया, गांधी जी टाईप धोती पहन लें तो सबसे बढ़िया, कुछ सुनिश्चित किस्म की शब्दावली का प्रयोग सदैव करते रहें जिसमे कि ग्राम स्वराज, स्वावलंबन, अहिंसा, लोकतंत्र इत्यादि किस्म की शब्दावली अौर इस लेख में बताये गये किस्म के लोगों से प्रमाणपत्र जरूर ले लें नही तो सारा किया धरा बेकार।

क्या कहा अापने कि अापकी पहुंच नही इन बड़े लोगों तक, अापके पास संसाधन नहीं; अाप चिन्ता ना करें अाप इनकी पत्नियों अौर बच्चों के पास जाकर कुछ दिन रहें अौर घरेलू कामकाज करें, बच्चों को नहलायें धुलायें, परिवार के कपड़े धोयें, घर की साफ सफाई करें अौर इन लोगों के घरों मे रहते हुये भी अपने लिये खाना या तो खुद बनायें या खुद इन्तजाम करें। क्या कहा यह भी अापके बस का नहीं तो फिर इन लोगों के दृश्य/अदृश्य प्रबंधकों के पास जायें, अौर उन लोगों को मक्खन लगायें या सेटिंग बैठायें; नहीं समझे अाप, प्रबंधक का मायने वे लोग जो धन का सारा अावागमन देखतें हैं लेखा जोखा दुरुस्त रखते हैं, यदि अापने अपनी चतुराई से इन लोगों का भी मन मोह लिया तो कम से कम छोटा टाईप के गांधी अाप हो ही जायेंगें। अाप क्या इतनी बड़ी दुकानों को चलाने वालों को हलके मे लेते हैं, पहले ही बताया गया कि कहीं चूक नहीं पूरे के पूरे प्रोफेशनलन हैं ये लोग, छोटे मोटे लोगों को तो ये लोग फूंक मार कर उड़ा देते हैं अौर उड़ने वाले को पता भी नहीं चलता, अाप चिन्ता ना करें इन लोगों के पास वेतनभोगी लोगों की पूरी फौज है जो इन लोगों के एक ईशारे मे दुनिया के किसी भी कोने मे धरना प्रदर्शन व मीडिया बाजी के लिये पूरी तैयार रहती है, जरूरत पड़ने पर अमरीका वगैराह देशों से पत्रकार लोग भी अा जाते हैं जो कि इन लोगों के ही द्वारा स्थापित लोग हैं इसलिये वे लोग गम्भीर सामाजिक मुद्दों मे कभी नही अाते किन्तु इन लोगो के छोटे से छोटे से मुद्दों को भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बताने के लिये दौड़े चले अाते हैं।

इसलिये अाप बिलकुल भी चिन्ता ना करें ये दुकानदार देखे भाले हैं, साख वाले हैं अौर हल्ला मचाना भी जानते हैं, अौर पूरे साल नये नये प्रायोजित अान्दोलनों की संभावनायें खोजने मे लगे रहते हैं, यदि संभावनायें नही मिल पाती तो जोर जबरदस्ती से भी अान्दोलनों को प्रायोजित करना जानते हैं।  इनको लाखों करोड़ो सिर्फ इन्ही बातों के लिये अाते हैं कि ये लोग अौर अधिक बलात्कार कर सकें अाम समाज की अास्थाअों के साथ उनके विश्वासों के साथ।  इन दुकानदारों का एक बहुत मजबूत तंत्र है जो कि अदृश्य रूप मे बहुत गहरे जुड़ा हुअा है अौर एक दूसरे के वेस्टेड इन्टेरेस्ट्स की केवल चिन्ता करता है।

क्या बोले अाप, कि इन लोगों के जमीनी भी काम भी हैं क्या?  नही धरती की असलियत मे तो इनके काम जमीन मे नही किन्तु ये लोग जमीनी कामों के प्रमाण खूब रखते हैं।  अापस मे ही प्रमाणों के अादान प्रदान करते हैं।  अाम लोगो के बीच एक भ्रम बनाये रखने के लिये नये नये ढोंग रचते हैं, जरूरत पड़ने पर पुरस्कारों का भी व्यापार कर लेते हैं।  फिर से याद दिलाता हूं कि पूरे प्रोफेशनल हैं, अापको इनके तंत्रों मेम चूकें बहुत कम मिलेगीं तभी तो अाम समाज की हालत बद से बदतर होती जा रही है। अाम समाज की हालत तो यह है कि विश्वास करे तो किस पर।  बेचारा भारतीय अाम समाज।

यदि ये हल्ला मचाने वाले समाज के ठेकेदार लोग सच मे ही समाज के प्रति ईमानदार होते, सच मे ही जमीन मे काम करने वाले लोग होते तो क्या गाँधी जैसे महापुरुष के नाम के साथ बलात्कार इतनी अासानी से करते जाते, जो खुद गांधी के व्यक्तित्व की गहराई की प्रारम्भिक वर्णमाला नही जानते वे लोग दूसरों को गांधी होने या ना होने का प्रमाणपत्र बांटते हैं।  यदि इतनी ही शर्म होती इन दुकानदारों मे तो अाज भारत के असली समाज की स्थिति ही कुछ अौर होती।

सोचा कि हमको तो बाजारों की भाषायें अाती नहीं, तो क्यों ना दुकानदारों मे ही कुछ लिख मारा जाये, कम से कम अपनी खुद की अक्षमता की भड़ास निकल जायेगी।

लेखक-
विवेक उमराव ग्लेंडेनिंग
जून २००९